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प्रवचन नहीं, कोई विधि दीजिए || आचार्य प्रशांत संवाद || आचार्य प्रशांत मोटीवेशन स्टोरी || आचार्य प्रशांत

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  नमस्कार! "सर, ऐसी कोई विधि आपने बनायी है जो आपने सोचा हो कि किसी ऐसे शिष्य को आप देंगे जो आपके प्रवचन नहीं समझ सकता?" आचार्य प्रशांत:  तुम जिन विधियों की बात कर रहे हो वो बहुत बाद की और बहुत निम्नतम श्रेणी की हैं। जितना भी ऊँचे-से-ऊँचा ज्ञान गुरु से शिष्य को मिला है वो सामीप्य में शब्दों के माध्यम से ही मिला है। उपनिषद क्या हैं? संवाद नहीं हैं? अष्टावक्र क्या कर रहे हैं? ऋभु गीता भी क्या है? वेदों के ऋषि अपने शिष्यों को कोई विधि थोड़ी दे रहे थे, वो सीधे सामने बिठाकर के सहज ज्ञान दे रहे थे। पर यह भी आज के युग की बड़ी विडंबना है कि ‘विधि चाहिए’ और वो विधि भी कुछ शारीरिक किस्म की हो तो ज़्यादा अच्छा है। कुछ पदार्थ उसमें शामिल होना चाहिए। कोई ख़ास किस्म की माला पहन ली जाए, कोई शारीरिक मुद्रा पकड़ ली जाए। ये सब बातें तो बहुत बाद में आ गयी हैं, नहीं तो जो सरलतम और शुद्धतम तरीका रहा है बोध की जागृति का वो यही रहा है कि आमने-सामने बैठो और बात करो। पता नहीं तुम्हारे मन में यह बात कहाँ से आ गयी कि संवाद बहुत कम दिए गए हैं, संवाद ही दिए गए हैं। ये जो विधिबाज़ हैं ये अभी-अभी आए हैं कि “हम तु

अकेले होते ही छा जाती है बेचैनी || आचार्य प्रशांत संवाद || आचार्य प्रशांत मोटीवेशन स्टोरी || आचार्य प्रशांत

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  "जब सबके साथ होते हैं या कोई काम कर रहे होते हैं तब तक तो ठीक है लेकिन जैसे ही अकेले बैठते हैं तो बेचैनी जैसा होता है। मन में ऐसा होता है कि कुछ मिसिंग है, खालीपन सा है। समझने की कोशिश करता हूँ, लेकिन समझ में नहीं आता है क्या बात है?" आचार्य प्रशांत:  जिनके साथ काम कर रहे हो और जो काम कर रहे हो उसमें अगर दम ही होता, तो उस काम ने तुम्हारा पूरा दम निचोड़ लिया होता न? यह सब अनुभव करने के लिए, सोचने के लिए तुम बचे कहाँ होते कि- खालीपन है, अधूरापन है, क्या करूँ? क्या न करूँ? दिक्कत शायद उन पलों में नहीं है जब अधूरेपन या खालीपन का अनुभव होता है। दिक्कत शायद वहाँ है जहाँ इस खालीपन का अनुभव नहीं होता है। जहाँ ये अनुभव नहीं हो रहा है, वहाँ ये खालीपन दबा हुआ है, छुपा हुआ है। काम क्या बन जाता है? आंतरिक हकीकत को छुपाने का बहाना। अपने आपको व्यस्त रख लो, कुछ सोचने समझने का मौका ही नहीं मिलेगा। उसमें दिक्कत बस छोटी सी यह है कि अगर जिस काम में अपने आपको व्यस्त रख रहे हो वह सही नहीं है, तो उसमें अपने आप को तुम पूरी तरह से झोंक पाओगे नहीं। उसमें तुम्हारा मन पूरे तरीके से कभी लीन होगा नहीं औ

एक स्वस्थ संबंध कैसा होता है एक स्वस्थ संबंध कैसा होता है || आचार्य प्रशांत संवाद || आचार्य प्रशांत मोटीवेशन स्टोरी || आचार्य प्रशांत

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  नमस्कार! बात सुनने में थोड़ी अजीब लगेगी पर ध्यान दोगे तभी समझ आएगी।  ध्यान नहीं दोगे तो कहोगे कि सर आप बड़ी विपरित बात कर रहे हैं। जिसने अपने अकेलेपन में खुश रहना सीख लिया सिर्फ वही पार्टी में मज़े मार सकता है। जो अपने अकेलेपन में दुखी है और पार्टी में इसीलिए जा रहा है ताकि पार्टी में अकेलापन मिटा सके, वो पार्टी में भी तन्हा ही रहेगा। दूसरे इसलिए नहीं होते हैं कि दूसरे तुम्हारे अकेलेपन को दूर करें। आदमी दूसरे के पास जाता है, इसके दो कारण हो सकते हैं: 1. पहले ये कि मैं बड़ा अकेला हूँ, मेरे दिल में गड्ढा है और तू उस गड्ढे को भर दे। ज़्यादातर लोगों की यही वजह रहती है। 2. दूसरी वजह होती है कि मैं इतना खुश हूँ कि तेरे पास आया हूँ। मैं खुश पहले से ही हूँ और इतना हूँ कि तेरे पास आ गया हूँ। तुम किस वजह से जाना चाहते हो किसी के पास? हम जाते हैं कि अगर तू न मिला तो मैं दुखी हो जाऊँगा। हम ये नहीं कहते कि तू हो, न हो, खुश तो मैं हूँ ही और अपनी ख़ुशी में तेरे पास आया हूँ। हम ये कहते हैं कि तू मिलेगा तो मैं खुश हो जाऊँगा। ये बड़ी गड़बड़ है क्योंकि अब दूसरा तुम्हारी ज़रूरत बन गया है, अब तुम उसको पकड़ कर रखना

मैं कौन ? || आचार्य प्रशांत संवाद || आचार्य प्रशांत मोटीवेशन स्टोरी || आचार्य प्रशांत

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  नमस्कार! गीता पर बहुत बात करी है मैंने,  और हैरान रहा हूँ कि बार-बार, यही मुद्दा उठता है कि राजपाट के लिए अपनों के ख़िलाफ़ जाना कैसे ठीक है? और किसी को ध्यान ही नहीं आता कि ये “अपने” शब्द का अर्थ क्या है—अपना कौन? अध्यात्म के मूल में ही है स्वयं को जानना—“मैं कौन?” अभी यह तो पता नहीं कि “मैं कौन?” तो यह कैसे पता कि “मेरा कौन?”? आप कौन हैं आपको पता नहीं, अपना कौन है ये पहले पता है? शाबाश! ये तो बड़ा तीर चलाया। ऋषिकेश में था मैं, तो एक युरोपियन देवी जी मिलीं।  मैंने पूछा “यहाँ कैसे?”, बोलीं, “यहाँ मैं ‘हू एम आई’ साधना करने आई हूँ, “कोहम” पता करना है, “मैं हूँ कौन?” मैंने कहा, “और ये आपके साथ कौन?”, बोलीं, “ये मेरे बॉयफ्रेंड हैं”। देवी जी समझ भी नहीं पा रही थीं कि उन्होंने कितनी विरोधाभासी बात कर दी है, कितनी सेल्फ-कॉन्ट्रेडिक्टरी बात कर दी है। अगर तुम्हें अभी नहीं पता है कि तुम कौन हो तो तुम्हें ये कैसे पता है कि जो तुम्हारे साथ है, वो तुम्हारा अपना है? “मुझे ये तो नहीं पता कि ‘मैं कौन हूँ’, वो तो आप बताएँगे, पर मुझे ये पता है कि ‘ये मेरे पति हैं, ये मेरा बच्चा है’।” अगर तुम्हें ये पता