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" जलना चाहते हैं या जगना चाहते हैं ? ", जीवन जीने के दो तरीके || आचार्य प्रशांत भाषण || आचार्य प्रशांत

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  Aacharya Prashant image अब आप बताइए, आप कैसा जीवन जीना चाहते हैं? कुछ दिनों पहले हमने आपके साथ  अवधूत गीता से श्री दत्तात्रेय के 24 गुरुओं की कहानी  साझा की थी। रोचक बात ये थी कि उनके गुरुओं की शृंखला में सूरज, चाँद, कबूतर, अजगर सब शामिल थे। उसी शृंखला में उनके दो गुरु ऐसे हैं जिनसे हम बहुत बार मिले हैं लेकिन उनसे सीखने का ख़याल मन में कभी नहीं आया होगा। हम किनकी बात कर रहे हैं? पतंगा और भौंरा। Aacharya Prashant Quote in Hindi image 🔸 पतंगे से उन्होंने क्या सीखा? “जैसे पतंगा रूप पर मोहित होकर आग में कूद पड़ता है और जल मरता है, वैसे ही अपनी इन्द्रियों को वश में न रखने वाला पुरुष जब स्त्री को देखता है तो उसके हाव-भावपर लट्टु हो जाता है और घोर अन्धकार में गिरकर अपना सत्यानाश कर लेता है। जो मूढ़ कामिनी-कंचन, गहने-कपड़ों में फँसा हुआ है और जो उपभोग के लिये ही लालायित है, वह विवेक खोकर पतंगे के समान नष्ट हो जाता है।” 🔸 भौंरे से उन्होंने क्या सीखा? “जिस प्रकार भौंरा विभिन्न फूलों से―चाहे वे छोटे हों या बड़े उनका रस संग्रह करता है, वैसे ही बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि छोटे-बड़े सभी शास्त्

" आचार्य जी, जाति के विषय पर उपनिषद क्या कहते हैं ? " || आचार्य प्रशांत संवाद || आचार्य प्रशांत

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  Aacharya Prashant image हम उपनिषदों की ताकत को समझते ही नहीं! आज  निरालंब उपनिषद शृंखला की छठी कड़ी  से आपको परिचित करवाएंगे। ये भाग बहुत खास है क्योंकि  आज उपनिषद में शिष्यों ने ऋषि से पूछा है, "जाति क्या है?" जी हाँ! उपनिषदों ने इस विषय पर भी चर्चा की है और बहुत-सी भ्रांतियों को तोड़ने का प्रयास किया है। Aacharya Prashant Motivation image जब कभी समाज में जाति के प्रश्न पर बवाल खड़ा होता है  तो बड़ी आसानी से लोग इसे एक 'धार्मिक' कुप्रथा बोलकर धर्म को गलत ठहराने की कोशिश करते हैं। लेकिन सनातन धर्म के ही उच्चतम ग्रंथ, उपनिषद, इस विषय पर क्या कहते हैं उसकी कभी बात नहीं करते। बात करें भी तो कैसे? क्योंकि ना धर्म के विरोधियों ने कभी उपनिषदों को गहराई से पढ़ा है, ना तथाकथित समर्थकों ने! हम उपनिषदों की ताकत को समझते ही नहीं।  हम जानते ही नहीं कि उपनिषदों के सूत्रों से ना सिर्फ भीतरी आध्यात्मिक क्रांति संभव है, बल्कि सामाजिक और धार्मिक क्रांति भी हो पक्की है यदि हम उनको अपने जीवन में सही स्थान दें। उनका नियमित पाठ, प्रचार व प्रसार करें। आज निरालंब उपनिषद से समझें: 🔸 जाति क्या

“ परिवार के सामने सारा ज्ञान विलुप्त हो जाता है, ऐसे में क्या करें ? ” || आचार्य प्रशांत भाषण || आचार्य प्रशांत

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  Aacharya Prashant image तुम्हारे हित में नहीं है देहभाव देहाभिमानी होने की सज़ा तुम्हें पल-पल मिलती है,  और सज़ा यही भर नहीं है कि चार-पाँच लोग जिनको तुम परिवार कहते हो, तुम उनसे आसक्त रहोगे, तुम अपने कपड़ों से भी आसक्त रहोगे, घर से आसक्त रहोगे, गाड़ी से आसक्त रहोगे, जूते-चप्पल से आसक्त रहोगे, क्योंकि वो सब किसके हैं? देह के हैं। उम्र को लेकर डरे-डरे रहोगे, मृत्यु का भय सताता रहेगा। आत्मा की तो मृत्यु होती नहीं,  और देह प्रतिपल मृत्यु की ओर ही अग्रसर। देह मान लिया तुमने अपने-आपको तो अब मौत से घबराते भागते रहो। तो जिसको ये बीमारी लगी हो कि उसे परिवार का मोह इतना ज़्यादा है कि अध्यात्म कुछ समझ में नहीं आता, या कि अध्यात्म कोरा ज्ञान बनकर रह जाता है जब परिवार की आसक्ति खड़ी होती है, तो मैं उससे कह रहा हूँ कि तुझे एक ही बीमारी नहीं सताएगी, तेरी बीमारियाँ अनंत हैं, प्रतिपल हैं, हर तल पर हैं। तुमने तो सिर्फ़ एक बीमारी का उद्घाटन किया,  एक राज़ खोला, और एक राज़ क्या है? कि सारा ज्ञान परिवार के सामने विलुप्त हो जाता है। मैं तुमसे कह रहा हूँ कि न, अगर तुमको ये परिवार वाली बीमारी लगी हुई है तो

"आपको जीवन में क्या चाहिए?", एक रोचक किस्सा || आचार्य प्रशांत || आचार्य प्रशांत संवाद

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  Aacharya Prashant image     “आचार्य जी, दुनिया में सभी लोगों का अध्यात्म की ओर रुझान क्यों नहीं होता?”   आज निरालंब उपनिषद शृंखला का चौथा दिन है  और हम आपके लिए इसकी चौथी कड़ी भी लाए हैं। लेकिन उससे पहले आपको  इसी उपनिषद के सत्रों से जुड़ी एक कहानी भी बताना चाहेंगे। इसी उपनिषद पर चर्चा हो रही थी, तभी एक साथी ने आचार्य जी से पूछा,  “आचार्य जी, दुनिया में सभी लोगों का अध्यात्म की ओर रुझान क्यों नहीं होता?” इस प्रश्न पर आचार्य जी थोड़ा मुस्कुराए और बोले, “देखो छोटे-मोटे सुख तो दुनिया में मिलते ही हैं, तभी तो दुनियादारी कायम रहती है। दुनिया से अगर तुम छोटी चीज़ माँगोगे तो दुनिया उसकी आपूर्ति कर देगी। दुनिया कोई बुरी जगह थोड़े ही है; कितने तरीके के सुख हैं दुनिया में, मिलते नहीं देखा लोगों को सुख? वो तो मिलते ही हैं दुनिया में। तो जो छोटी चीज़ माँग रहे हैं, दुनिया उनके लिए पर्याप्त है। ऋषि होने का मतलब है कि  "जो कुछ दुनिया दे सकती है भाई! मुझे उससे कुछ अधिक चाहिए; अपन को ज़्यादा माँगता।" आत्मा सिर्फ उनके लिए है—ये बात हम बहुत बार दोहरा चुके लेकिन ज़रूरी है—आत्मा सिर्फ उनके लिए है ज

जिन्हें आप ज्ञानी समझते हैं वो ज्ञानी नहीं || आचार्य प्रशांत संवाद || आचार्य प्रशांत

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जिन्हें आप ज्ञानी समझते हैं वो ज्ञानी नहीं ! आज निरालंब उपनिषद शृंखला की का सातवाँ दिन है और आज की कड़ी में शिष्यों ने ऋषि से प्रश्न किया है |  1. ज्ञान क्या है?  2. अज्ञान क्या है?   इसप हमारे ऋषि ने जो उत्तर दिया है वो शायद आपको चौंका देगा! हमारे लिए ज्ञान का मतलब होता है: किताबें पढ़ना, डिग्री हासिल करना, शब्द-कोश से निकाल कर बड़े-बड़े शब्दों का इस्तेमाल करना, धाराप्रवाह अंग्रेज़ी या शुद्ध हिन्दी में बात करना, ऐसे लोगों को ही हम ज्ञानी कहते हैं न ?  Aacharya Prashant Motivational Quote image  और उपनिषद में ऋषि हमें बताते हैं: दुनिया में बदलने वाली सभी वस्तुओं में एक ही ना-बदलने वाला तत्त्व वास करता है, ऐसा जानना ही ज्ञान है। उनकी ज्ञान की परिभाषा सुनकर आप समझ ही गए होंगे कि 'अज्ञान' क्या है। आजतक आप जीतने लोगों को ज्ञानी समझते आए थे, ऋषि ने एक बार में सभी को अज्ञानी घोषित कर दिया! आजतक आपको ज्ञान हासिल करने के जीतने तरीके पता थे, ऋषि ने एक बार में सभी को निरर्थक घोषित कर दिया! लेकिन अब...   🔸 वास्तविक ज्ञान कैसे मिले ?  🔸 कोई भी सच में ज्ञानी कैसे बने ?  🔸 जीवनशैली में क

पहले जो कर लिया, वही बहुत है || आचार्य प्रशांत संवाद || आचार्य प्रशांत

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  Aacharya Prashant image "पहले जो कर लिया, वही बहुत है..." बंधन जब आते हैं तुम्हारे पास तो बोल कर थोड़े ही आते हैं कि ‘हम बंधन हैं’।  तब तो वो गठबंधन बन कर आते हैं, बंदनवार बनकर आते हैं। नए बंधन पकड़ो मत और पुरानों के प्रति सदा एक अरुचि रहे, एक ग्लानि रहे, एक बेचैनी रहे। कभी समझौता मत कर लेना। बंधनों के प्रति ग्लानि रहेगी तो ही तुम्हारा कर्म मुक्ति की ओर उद्यत होगा। बंधनों के साथ क़रार कर लिया अगर, तो जो भी कर्म करोगे, वह और बंधन पकड़ने के लिए करोगे। जब पुराने बंधन बुरे लग ही नहीं रहे, उनके साथ ज़िन्दगी ने एक सुव्यवस्था कर ली है, तो नए बंधनों से भी फ़िर क्या ऐतराज़? पुरानों के प्रति हमेशा एक कचोट रहे।  दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँककर पिए। पुरानी ग़लतियाँ भूल नहीं जानी हैं, पुरानी ग़लतियाँ जो भूल गया, वो उन्हीं ग़लतियों को दोहराएगा, और बड़े परिमाण में दोहराएगा। सदा यह याद रखना कि दंड भोग रहे हो। जिसको यह याद रहेगा कि वह दंड भोग रहा है, जिसमें अपनी दंडित अवस्था के प्रति लज्जा रहेगी, ग्लानि रहेगी, वही अपने लिए नए दंड का निर्माण नहीं करेगा। पहली बात, वह नए दंड का निर्माण नहीं करेगा और दूसरी

प्रवचन नहीं, कोई विधि दीजिए || आचार्य प्रशांत संवाद || आचार्य प्रशांत मोटीवेशन स्टोरी || आचार्य प्रशांत

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  नमस्कार! "सर, ऐसी कोई विधि आपने बनायी है जो आपने सोचा हो कि किसी ऐसे शिष्य को आप देंगे जो आपके प्रवचन नहीं समझ सकता?" आचार्य प्रशांत:  तुम जिन विधियों की बात कर रहे हो वो बहुत बाद की और बहुत निम्नतम श्रेणी की हैं। जितना भी ऊँचे-से-ऊँचा ज्ञान गुरु से शिष्य को मिला है वो सामीप्य में शब्दों के माध्यम से ही मिला है। उपनिषद क्या हैं? संवाद नहीं हैं? अष्टावक्र क्या कर रहे हैं? ऋभु गीता भी क्या है? वेदों के ऋषि अपने शिष्यों को कोई विधि थोड़ी दे रहे थे, वो सीधे सामने बिठाकर के सहज ज्ञान दे रहे थे। पर यह भी आज के युग की बड़ी विडंबना है कि ‘विधि चाहिए’ और वो विधि भी कुछ शारीरिक किस्म की हो तो ज़्यादा अच्छा है। कुछ पदार्थ उसमें शामिल होना चाहिए। कोई ख़ास किस्म की माला पहन ली जाए, कोई शारीरिक मुद्रा पकड़ ली जाए। ये सब बातें तो बहुत बाद में आ गयी हैं, नहीं तो जो सरलतम और शुद्धतम तरीका रहा है बोध की जागृति का वो यही रहा है कि आमने-सामने बैठो और बात करो। पता नहीं तुम्हारे मन में यह बात कहाँ से आ गयी कि संवाद बहुत कम दिए गए हैं, संवाद ही दिए गए हैं। ये जो विधिबाज़ हैं ये अभी-अभी आए हैं कि “हम तु