पहले जो कर लिया, वही बहुत है || आचार्य प्रशांत संवाद || आचार्य प्रशांत
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"पहले जो कर लिया, वही बहुत है..." |
बंधन जब आते हैं तुम्हारे पास तो बोल कर थोड़े ही आते हैं कि ‘हम बंधन हैं’। तब तो वो गठबंधन बन कर आते हैं, बंदनवार बनकर आते हैं।
नए बंधन पकड़ो मत और पुरानों के प्रति सदा एक अरुचि रहे, एक ग्लानि रहे, एक बेचैनी रहे। कभी समझौता मत कर लेना। बंधनों के प्रति ग्लानि रहेगी तो ही तुम्हारा कर्म मुक्ति की ओर उद्यत होगा।
बंधनों के साथ क़रार कर लिया अगर, तो जो भी कर्म करोगे, वह और बंधन पकड़ने के लिए करोगे। जब पुराने बंधन बुरे लग ही नहीं रहे, उनके साथ ज़िन्दगी ने एक सुव्यवस्था कर ली है, तो नए बंधनों से भी फ़िर क्या ऐतराज़?
पुरानों के प्रति हमेशा एक कचोट रहे। दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँककर पिए। पुरानी ग़लतियाँ भूल नहीं जानी हैं, पुरानी ग़लतियाँ जो भूल गया, वो उन्हीं ग़लतियों को दोहराएगा, और बड़े परिमाण में दोहराएगा।
सदा यह याद रखना कि दंड भोग रहे हो। जिसको यह याद रहेगा कि वह दंड भोग रहा है, जिसमें अपनी दंडित अवस्था के प्रति लज्जा रहेगी, ग्लानि रहेगी, वही अपने लिए नए दंड का निर्माण नहीं करेगा। पहली बात, वह नए दंड का निर्माण नहीं करेगा और दूसरी बात, वह जो उसने पुराने बंधन पकड़ रखे हैं, उनसे मुक्ति के लिए सदा सचेत रहेगा, कुछ कर्म करेगा। यही कर्मयोग है।
कर्मयोगी का पुरस्कार यह होता है कि वह आगे भोगने के लिए नया कर्मफल तैयार नहीं करता। पुराना कर्मफल काटता चलता है और आगे के लिए कोई नया कर्म तैयार नहीं करता। वह कुछ ऐसा नहीं करता जो आगे अब उसको और बंधन देगा, और बेड़ियाँ और परेशानियाँ देगा।
वह कहता है कि “पहले जो कर लिया, वही बहुत है, उसी को भोगे जा रहे हैं, उसी का दंड खत्म नहीं हो रहा। अब ज़रा भी और ग़लती नहीं करेंगे। ग़लत रास्ते पर बहुत दूर चले आए हैं, अब इसी रास्ते पर और आगे थोड़े ही बढ़ते जाएँगे।”
वह तत्काल मुड़ जाता है।
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बंधनों को काटने की ओर एक और कदम!
आज का भाग:
बंधनों पर हो रही चर्चा के शुरुआती भाग:
🔸 अध्यात्म घर को रहने लायक बनाता है
🔸 स्वयं से प्रेम करने का सही अर्थ
और निरालंब उपनिषद के सभी 15 भाग यहाँ देखे जा सकते हैं
पुनश्च: भूलिएगा नहीं, आप कार्ट में ऐड कर सभी कोर्सेस के लिए एक साथ भी रजिस्टर कर सकते हैं।
Note :- यह आचार्य प्रशांत की ऑफिशियल साइट नहीं है पोस्ट पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद |
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